
Ishaan Garg is a positive boy of 19, who hails from the heritage city of Gwalior and is currently studying at Christ University, Bangalore. The habit of writing developed accidentally, when he was somewhat in a state of stress. His writings decode the reality of life, world and the holistic learning, he received from the society, and also one’s understanding towards it.
I
कुछ सुनने की तलभ थी,
दिल ही दिल हसीन सपनों से भरी एक नदी थी,
इशारों भरे समझौतों में वो बेशरत प्यार कि बर्नी थी,
उसके हाथों में मेरा हाथ देख, वक़्त की भी साँसें थमी थीं,
इन सबके बीच, बस उस प्यार के इहज़ार की कमी थी,
जिसे सोच कर मेरी दिल की धड़कने भी सहमी थीं,
कुछ ऐसी उनकही सी थी वो प्रेम कथा,
जिसकी दास्ताँ सिर्फ़ ख़ुदा के दरबार में बनी थी।
II
कुछ बातें अनकही सी, दिल ही दिल दफ़न हो जाती है,
होंटों तक आती है, पर बयाँ नई हो पाती है,
कहो, तो सज्जन्नों को तख़लीफ पहुँचाती है,
ना कहो, तो मनुष्य को अवसाद के चक्रवूयह में फाँसती है,
क्या वर्चस्व है, ऐसे लोकतंत्र का,
क्या महत्व है, इंसानियत से भारी भावनाओं का,
जब दिल ही दिल, चंद अनकही बातें,
मनुष्य का बहुमूलए जीवन, उससे छीन जाती है।
III
गुमनामी की सरहद पर भटकता,
एक प्यार का प्यासा जीव,
बस एक ख़्याल दौहरता, गुनगुनाता,
पल भर बस यह सोचता,
यह क्या ज़ुल्म है जो समाज को बर्दाश्त नहीं,
यह क्या वाक्य है जो आज की आराधना नहीं,
यह क्या गुण है, जसकी कोई शिक्षा नहीं,
यह कैसा प्यार है, जिसमें कोई बंधन नहीं,
यह कौनसी इंसानियत है, जिसमें कोई मानवता नहीं,
क्या यही है मौजूदि दुनिया, जिसमें स्नेही प्रमाण नहीं,
या यही वो भरम्माण है, जिसमें बसी गुमनामी कहीं।
